
यूं ही फेसबुक में खबरों को स्क्रॉल करते करते एक पोस्टर पर नजर गयी , जिसमें लिखा था कि चीन ने बनाया कृतिम सूर्य।
पहले लगा सोशल मीडिया में लोग कई बार आकर्षित करने के लिए ऐसी पोस्ट डाल देते हैं, फिर सोचा एक बार सर्च करके पता कर लेता हूँ क्या पता इस दिशा में कुछ कार्य चल रहा हो।
पता चला कि ये सूचना बिल्कुल सत्य है और ये कार्य पिछले 4- 5 वर्षों से चल रहा है, जिसमें उन्हें सफलता भी मिल रही है।
यहां हम इस विषय पर पूरा आलेख अपने देश की परिस्थितियों से तुलना करते हुए आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहे हैं।
इस विषय पर अपनी राय से हमें जरूर अवगत कराइयेगा।
भूमिका: भारत और चीन का विरोधाभासी सफर
जब हम धार्मिक,राजनीतिक बहसों में उलझे हुए है, हमारा पड़ोसी देश चीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से एक वैश्विक महाशक्ति बनने की दिशा में निरंतर अग्रसर है। यह विरोधाभास हमें एक गंभीर प्रश्न की ओर ले जाता है:
“क्या हम विकास की दौड़ में पिछड़ रहे हैं, जबकि दुनिया भविष्य की ऊर्जा, अंतरिक्ष और कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर केंद्रित हो रही है?”
चीन का वैज्ञानिक अभियान: तथ्य एवं उपलब्धियाँ
जब भारत बहसों में उलझा है, चीन “वैज्ञानिक सुपरपावर” बनने की राह पर दौड़ रहा है:
- 🌞 कृत्रिम सूर्य (EAST):
न्यूक्लियर फ्यूज़न में विश्व कीर्तिमान। - 🚀 अंतरिक्ष प्रभुत्व:
चांद के दूरस्थ हिस्से (Chang’e-6) से नमूने लाना, अपना स्पेस स्टेशन बनाना। - 🧠 AI क्रांति:
2030 तक कृत्रिम बुद्धिमत्ता में विश्व नेतृत्व का लक्ष्य। - ⚡ ग्रीन टेक निवेश:
सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरी टेक्नोलॉजी में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर कब्जा।
चिंतन का बिंदु:
“चीन ने EAST जैसे प्रोजेक्ट्स से साबित किया है कि विज्ञान राष्ट्रों को महान बनाता है।”
तुलनात्मक दृष्टिकोण: भारत बनाम चीन

भारत की क्षमता: एक आशावादी अंत
हालाँकि भारत भी विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है:
- चंद्रयान-3 और सौर मिशन आदित्य-L1 जैसे अभियान।
- डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इकोसिस्टम में तेजी।
- ITER जैसे वैश्विक प्रोजेक्ट्स में तकनीकी योगदान।
लेकिन चुनौती यह है कि:
“हमें धार्मिक विमर्श और वैज्ञानिक प्रगति के बीच संतुलन बनाना होगा। जिस देश ने आर्यभट्ट, सुश्रुत और रामानुजन जैसे विश्वविख्यात वैज्ञानिक दिए, वह आज विज्ञान से विमुख क्यों हो रहा है?”
निष्कर्ष: एक जागरूक करने वाली पुकार
चीन का “कृत्रिम सूर्य” न केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि भारत के लिए एक दर्पण भी है। यदि हमने अब भी धार्मिक कलह को प्राथमिकता देनी जारी रखी, तो हम 21वीं सदी की वैज्ञानिक क्रांति में पिछड़ जाएंगे। समय आ गया है कि:
- शिक्षा और रिसर्च पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
- युवाओं को विज्ञान के प्रति प्रेरित किया जाए।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई जाए।
चीन का EAST (Experimental Advanced Superconducting Tokamak) प्रोजेक्ट वास्तव में एक उल्लेखनीय वैज्ञानिक उपलब्धि है,
✅ 1. चीन द्वारा बनाया यह सूर्य क्या है?

- चीन का कृतिम सूर्य EAST वास्तव में एक टोकामक (Tokamak) डिज़ाइन पर आधारित न्यूक्लियर फ्यूज़न रिएक्टर है, जो हेफ़ेई इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल साइंस (चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज) में स्थित है।
- यह पृथ्वी पर सूर्य के केंद्र जैसी परिस्थितियाँ बनाता है (अत्यधिक तापमान और दबाव) ताकि हाइड्रोजन परमाणुओं के संलयन (Fusion) से ऊर्जा उत्पन्न की जा सके।
- यह प्लाज़्मा को चुंबकीय क्षेत्रों द्वारा नियंत्रित करके हाइड्रोजन आइसोटोप्स (ड्यूटीरियम और ट्रिटियम) के संलयन (Fusion) के लिए अत्यधिक तापमान (करोड़ों डिग्री सेल्सियस) उत्पन्न करता है।
- तापमान रिकॉर्ड : EAST ने 150 मिलियन डिग्री सेल्सियस (सूर्य के केंद्र से 10 गुना अधिक) तापमान हासिल किया है। सूर्य के केंद्र का तापमान ~15 मिलियन °C है, जबकि EAST ने 150 मिलियन °C हासिल किया है।
✅ 2. कृतिम सूर्य की महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ:
- तापमान रिकॉर्ड:
- 2021 में, EAST ने 120 मिलियन °C पर 101 सेकंड और 160 मिलियन °C पर 20 सेकंड तक प्लाज़्मा को स्थिर रखा।
- 2023 में, इसने 70 मिलियन °C पर 1,056 सेकंड (17.6 मिनट) का विश्व रिकॉर्ड बनाया, जो संलयन ऊर्जा शोध में एक मील का पत्थर है।
- 2024 की प्रगति:
- हाल के प्रयोगों में EAST ने एच-मोड (High-Confinement Mode) में प्लाज़्मा को स्थिर करने में सफलता पाई है, जो ऊर्जा उत्पादन की दक्षता बढ़ाता है।
✅ 3. कृतिम सूर्य का उद्देश्य:
- स्वच्छ ऊर्जा: न्यूक्लियर फ्यूज़न के लाभ आपके द्वारा बताए गए अनुसार ही हैं:
- कोई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन नहीं।
- ईंधन (समुद्री जल से ड्यूटीरियम) लगभग असीमित।
- दुर्घटना का जोखिम नगण्य (विखंडन के विपरीत)।
- वैज्ञानिक शोध:
चरम भौतिक स्थितियों के अध्ययन से पदार्थ के गुणों, प्लाज़्मा भौतिकी और क्वांटम यांत्रिकी की समझ बढ़ती है।
✅ 4. ध्यान देने योग्य बातें:
- व्यावहारिक ऊर्जा स्रोत नहीं:
EAST का उद्देश्य फ्यूज़न की वैज्ञानिक संभावना को सिद्ध करना है, न कि बिजली उत्पादन। यह अभी शुद्ध रिसर्च प्रोजेक्ट है। - अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
ITER (फ्रांस) जैसे प्रोजेक्ट्स में चीन, भारत, यूरोपीय संघ, अमेरिका आदि 35 देश साझेदार हैं। यह 2025 तक पहला प्लाज़्मा उत्पन्न करने का लक्ष्य रखता है। - चीन का लक्ष्य:
चीन CFETR (China Fusion Engineering Test Reactor) के माध्यम से 2035 तक फ्यूज़न प्रोटोटाइप और 2050 तक व्यावसायिक रिएक्टर बनाना चाहता है।
निष्कर्ष: चीन का EAST फ्यूज़न ऊर्जा की दिशा में एक बड़ा क़दम है, लेकिन व्यावसायिक उपयोग अभी दशकों दूर है। इस क्षेत्र में भारत भी ITER प्रोजेक्ट के माध्यम से सक्रिय योगदान दे रहा है।
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